Wednesday, November 3, 2021

शहीद दिवाली

 शहीद दिवाली


पुरा देश मना रहा है पापा 

आज देश का त्योहार दिवाली

हर घर मे है घरवाला और घरवाली

अपना ही तो घर है पापा 

जहाँ आपकी आस मे मा जी रही अकेली 

फिर भी पापा आप सीमा पर 

क्यु खेल रहे हो होली.


समज सकता हू पापा 

आपका ईमान और राष्ट्रभक्ती 

पर यहा कौन जान रहा है 

आपके जिंदगी की क्या है 

होली और दिवाली 

फिर भी पापा आप सीमा पर

क्यू खेल रहे हो होली..


सालोसाल बीते पापा आपके 

सरहद्द और सीमा पर 

करते देश और दुनिया की रखवाली 

क्या कभी सवाल आया पापा ?

कितनी सुरक्षित है आपकी घरवाली 

फिर भी पापा आप सीमा पर 

क्यू खेल रहे हो होली?


एक तो दिन निकालो पापा 

मनाने हमारे साथ दिवाली 

अब तुम्हारी छकुली भी नही रही 

वह भोली भाली.

उसको भी सहा नही जाता अब

आपके बिना ये घर खाली 

फिर भी पापा आप सीमा पर 

क्यू खेल रहे हो होली.


यहा तो सब जी रहे पापा

 मदमस्त वह जिंदगानी 

गुजरता है हर दिन उनका

जैसे मना रहे दिवाली.

पर आपको लडते हुए देखकर पापा 

बंद हो जाती है मेरी बोली.

 फिर भी पापा आप सीमा पर 

क्यू खेल रहे हो होली.


आप तो नही थे इतने

बेवकूफ या पत्थरदिल पापा.

जब मै आप की लाडली छकुली थी

मेरे चिकने चिल्लाने की आवाज 

आपको लगती थी जैसे 

दुश्मन की बंदूक से आयी गोली.

फिर भी पापा आप सीमा पर 

क्यु खेल रहे हो होली?


आज तो आये हो पापा 

क्या मनाऊ गम या खुशीयाली 

पर आपकी बंद सासे ही बता रही है मुझे

मेरी हुई है झोली खाली  

ऐसे मे आपही बताओ पापा 

क्या मनावू मै?

मेरे जिंदगी की होली 

या आपकी शहीद दिवाली....



शब्द प्रभू

डॉ प्रभाकर लोंढे