Sunday, November 20, 2016

*मिञानो!!! काल माझा मिञाने एटिएम च्या लाईन मध्ये उभा असताना कचरा वेचुन उदरनिर्वाह करणारी स्ञी आपल्या मुलीला शाळेत नेवुन पोहचवितांना पाहीली. मुलगी शाळेच्या ड्रेसवर. आई रस्त्याने कचरा (प्लस्टीक बाटल वगैरे ) वेचत रस्त्याने दोन्ही कामे कराताना पाहीली. त्याने तो अनुभव माझ्याशी शेअर केल्यावर मी माझ्या भावना शब्दांत मांडण्याचा प्रयत्न केला* बरा वाटला तर अवश्य सांगा.

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*कचरावाट*
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जा गं पोरी शाळेत तु
तु शोध मार्ग दुसरा.
जीवन गेल माझं सारं
उचलता उचलता कचरा....!!धृ!!

नको येऊस माझ्या माघारी
मिळणार नाही तुला आसरा
इथे पोट कधी भरत नाही
दिवाळी असो वा दसरा ..
            जा गं पोरी शाळेत तू
             तू शोध मार्ग दुसरा..

व्यवस्थेच्या उंबरठ्याशी
मी मारते आहे चकरा
संपलय माझं जीवन आता
दिवस उरलेय अकरा.
           जा गं पोरी शाळेत तू
             तू शोध मार्ग दुसरा..

घे उंच भरारी तू
जसा आकाशी उडे शिकरा
दाखवून दे एकदा तू
स्त्री जातीचा नखरा..
            जा गं पोरी शाळेत तू
             तू शोध मार्ग दुसरा..
       

संपवून टाक कचरा सारा
वाहू दे समृद्धीचा वारा
कचरा वाटेवरुन चालतांना
कळू दे तुझा दरारा.
             जा गं पोरी शाळेत तू
             तू शोध मार्ग दुसरा..
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 *डॉ प्रभाकर लोंढे गोंदिया-चंद्रपूर*

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