जीत जिंदगी की.
बहोत बार देखा मैने,हसते खिलते हुए खेत खलियानों को,
बरसते बादल और उलझते तुफानोंसे
धडाडसे गीरते पेडों कों,
फिर भी जिने की तमन्ना रखकर मैं
सोचता रहा मन ही मन में,
क्यू जिंदा है तू ?
क्या पडी है तुझे जिनें की इस दर्दभरी संसार में.
तब उम्मिदे जाग उठी,
और बोलने लगी,
"तू जिंदा है तो
जिंदगी की जित पर यकीन कर."
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