Friday, May 4, 2018

दिल की बात

जिंदगी का सफर कब किस मोडपर आयेगा यह कोई बताही नही सकता|  वैसेही मेरी जिंदगीमे मेरा गोंदिया, इस महाराष्ट्र के मध्यप्रदेश छत्तीसगढ सीमापर हिंदी भाषिक मराठी जिले मे आना मेरे लिए बहुतही कारागर साबित हुआ|  मै जन्म से मराठी भाषिक चंद्रपूर जिले का रहनेवाला होने के बाद पिछले पंधरह साल की सामाजिक सहवास से हिंदी भाषा से मेरा अवगत होना, मै मेरा विशेष सौभाग्य समजता हू|  मूलतः मराठी भाषिक होकर भी हिंदी मे एक खंडकाव्य लिखने का श्रेय, मै मेरा हिंदी भाषिक सहवास, सभी दोस्त, विद्यार्थी, सहपाठी और मेरे पितृतुल्य साहित्यिक गुरुजन इन सबको देना चाहता हू|
  यह मेरी साहित्यिक रचना धरतीपर मनुष्य जाती का एक आवश्यक अंग होने वाले नारी जाती की बरसों साल पुरानी जीवन कहानी को, उसके क्षमताओ कों उजागर करती है| उसकी पराधीनता के साथ साथ  दर्दभरी दास्तान को भी सामने लाने का प्रयास करती है|
नारी की कोख से जनम लेने वाली दुनियाने अपनेही मा, बहन, बेटी को कैसे गुलाम बनाया| उसकी क्षमताओं का  उसको कैसे पताही नही लगने दिया, इस बात को सामने लाते हुए उसकी जिम्मेदारी को भी निर्धारित किया| उसकी सालोसाल की गुलामगिरी से निकलने का सही रास्ता बताया| आज की शिक्षित नारी जीवन मे क्रांतीज्योति सावित्री और महात्मा फुले दाम्पत्य का योगदान की समस्त नारी जाती को याद दिलाने की कोशिश किया| नारी की भूत-वर्तमान स्थिती जानकर भविष्य की संभावनाओं को प्रतिबिंबित किया|
          नारी शिक्षा के कारण नारी जीवन मे आया बदलाव ऐतिहासिक तौरपर वर्तमान से जोडने का प्रयास करते, उसकी अधिकार-कर्तव्य के साथ साथ मिली स्वतंत्रता, स्वाधीनता का अहसास दिलाते  स्वैराचारी न बनने का नारी को आदेश भी दिया |
        यह मेरी रचना समाज जीवन मे नारी की अहमं भूमिका को न्याय दिलाने के लिए जरूरी सामाजिक वातावरण बनाने मे सफल रहेगी, यह मै आज विश्वास के साथ कहना चाहुंगा| इसलिए यह मेरा खंडकाव्य भारतीय नारी की दर्दभरी दास्तान खतम करके पूरे संसार की नारी जाती को जीने का नया रास्ता अवश्य दिखाएगा, रह मेरा वादा है|
   इस खंडकाव्य के माध्यम से मेरा यह हिंदी साहित्यिक योगदान सामाजिक और साहित्यिक तौर पर अवश्य स्विकार किया जागा, इस आशा के साथ यह मेरा खंडकाव्य पाठकों कें हवाले करने जा रहा हू|
       जिनकी कृपादृष्टी पर मेरा सब क्रियाकलाप चालता है, उन पिताश्री स्व. रामाजी लोंढे को मैत्री कमी नजर अंदाज नहीं कर सकता| इस अद्वितीय साहित्य कृती को साकार करणे मेरी मेहनत को जिन्होने सहयोग दिया, वो मेरी अर्धांगिनी सीमा, जिसकी ममता से मेरा जीवन सुगंधित हुआ, वो मेरी मा, बहन, भाभीजी का आशीर्वाद इन सब ने मुझे इस साहित्य कृति को लिखने के लिए मजबूर कर दिया, क्रांतिज्योती सावित्री को अपेक्षित नारी विकसित करने, योगदान देने का मन बनाया| जिसको मै सावित्री और महात्मा फुले को अपेक्षित नारी बनाने का मन ही मन मे सपना देखता हू, वो मेरी बेटी मृगांक्षी ने समय समय पर नारी गरिमा का अहसास दिलाया| इसके अलावा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जिन्होने सहयोग दिया, उन सभी का मै बहोत बहोत आभारी हू|
     इस साहित्यकृती को साकार करणे आदरनिय गुरुवर्य हिंदी साहित्यिक डा.जे.पी बघेल साहब ने प्रस्तावना लिखने का कष्ट उठाया| गोंदिया के जेष्ठ साहित्यिक छगन पंचे साहब ने  उसे सुधार, संशोधन एवं अवलोकन करके उसको निर्दोष करने का मोर्चा संभाला| बंडी दुवाओ के साथ हिंदी साहित्य मे कदम रखने हिम्मत दिया| मेरी आन बान शान मेरा बेटा शाश्वत ने भी मुझे सहयोग दिया| मेरे हिंदी भाषिक दोस्त खुमेंद्र कटरे, सुनिल बोपचे के साथ बहोत सारे दोस्त एवं छात्रोंने भी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष मेरा हिंदी भाषा का ज्ञान बढाया|  त्रिवेणाई प्रकाशन, नागपूर ने प्रकाशित करणे वादा किया| इन सबका इस साहित्य कृति को प्रकाशित करणे मे बडा योगदान होने के कारण मै सभी का दिलसे बहुत आभारी हू|

०२/०५/२०१८                  डा. प्रभाकर
                               त्रिवेणाई/ रामाजी लोंढे

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